यौन रोगों की समस्या से पूरा विश्व परेशान है। स्त्राी-पुरूष का शारीरिक मिलन दुनिया का सबसे बड़ा भौतिक सुख माना गया है और इस सुख का पूरा आनन्द व लाभ उठाने के लिए ही समाज में विवाह-बंधन की व्यवस्था हुई है ताकि स्त्राी-पुरूष अपनी मर्यादा में रहकर अपने विवाहित जीवन का पूरा सुख तथा आनंद उठा सकें। लेकिन कुछ पुरूष अपनी बढ़ती हुई कामुकता के कारण अपनी पत्नी को घर की दाल समझते हैं तथा इधर-उधर अन्य घरों की स्त्रिायों के चक्कर में लगे रहते हैं। जब उन्हें दूसरे घरों की स्त्रिायों से संबंध बना लेते हैं क्योंकि यह वर्ग पुरूष को आसानी से कुछ धन खर्च करने के बदले में आसानी से मिल जाता है और फिर इन से संबंध बनाने से पुरूष को जो ईनाम मिलता है उसके दर्द व होने वाले दुष्परिणामों के होने की बात सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पुरूष को जो बीमारियां ऐसे संबंध बनाने से लगती है उनसे पुरूष की सारी सेहत शक्ति छिन्न-भिन्न हो जाती है और यह बीमारियां एक बार लगकर सारी जिन्दगी पीछा नहीं छोड़ती। पुरूष की बीमारी से उनकी पत्नी को तो बीमारी लगती ही है साथ में उसकी होने वाला संतान पर भी बीमारी का असर पड़ता है। इन बीमारियों में जो शिकायत बनती है उसमें सुजाक व आतश्क रोग मुख्य है लेकिन आज की वर्तमान स्थिति में एक एड्स नामक खतरनाक बीमारी भी अपने पैर फैला रही है। आतशक और सुजाक तो उचित इलाज करने से पूरी तरह ठीक हो जाता है लेकिन एड्स नामक खतरनाक बीमारी अभी तक लाइलाज है और सारी दुनिया इसके लिए चिन्तित है। इस बीमारी से मरने वालों की गिनती यूरोप, अमेरीका तथा अफ्रीका में सबसे ज्यादा है और भारत में भी यह गिनती धीरे-धीरे बढ़ रही हैं। पूर्ण चिकित्सा कराने के पश्चात् भी रोगी पुनः यौन रोगों के कुएं में छलांग लगाने चल पड़ता है।
वेश्याओं या पेशेवर चरित्राहीन स्त्रिायों के साथ सहवास करने से पेशाब की नली में घाव हो जाते हैं तथा उनमें पीप पड़ जाती है जो पेशाब के रास्ते बहने लगती है। पेशाब बूंद-बूंद आता है तथा पेशाब करते समय इतनी तकलीफ व जलन होती है कि पुरूष पेशाब की हाजत होने पर भी तड़पने लगता है। सुजाक का जहर खून में मिलकर वीर्य तक पहुंच जाता है तथा वीर्य में पैदा होने वाले शुक्राणुओं को भी नष्ट कर देता है। ऐसी स्थिति में समझदारी यही है कि इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर बिना किसी लापरवाही या देरी तुरन्त ही चिकित्सक को दिखाकर उचित चिकित्सा करा लेनी चाहिए। आतशक या गर्मी
यह रोग भी व्याभिचार की देन है। शुरू में तो इस बीमारी में कोई तकलीफ या जलन नहीं होती लेकिन धीरे-धीरे जब यह बढ़ने लगती है तो स्त्राी-पुरूष के गुप्त अंगों पर घाव बनने शुरू हो जाते हैं और जब इसका जोर कुछ अधिक बढ़ता है तो यह सारे शरीर पर फूट निकलती है। शरीर में लाल-लाल चकत्ते, दाने, फुन्सियां बनकर उनमें घाव हो जाते हैं इस बीमारी में नाक की हड्डी तक गल जाती है तथा इन्द्री में सड़न व बद्बू पैदा हो जाती है। जिन्दगी जीते जी नरक बन जाती है क्योंकि इस रोग में मिरगी, लकवा, फालिज, कोढ़ तथा पागलपन तक की शिकायत होने की संभावना बनी रहती है। इस बीमारी की सबसे खास बात यह है कि वर्षों तक इसका पता नहीं चलता लेकिन धीरे-धीरे अन्दर ही अन्दर यह बढ़कर रोगी की हालत खराब कर देती है तथा पीढ़ी दर पीढ़ी उसकी संतान में भी अपना असर छोड़ती रहती है। ऐसी बीमारी का जरा सा भी आभास होने पर रोगी को चाहिए की वह जल्दी ही अपनी जांच करा ले तथा सही-सटीक चिकित्सा करा कर ऐसी दुखदायी बीमारी से मुक्ति पा लें। हमारे क्लिनिक में ऐसे केसों का बड़ा सावधानी से पक्का इलाज होता है।
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