जवानी वास्तव में किसी विशेष उम्र का नाम नहीं है। यदि 18 से 40 साल तक ही उम्र का नाम जवानी होता तो आज हम 18 साल के नव-युवकों को बूढ़ा तथा 60 वर्ष के बूढ़ों को जवान नहीं देखते वास्तव में जवानी तो अच्छी सेहत व ताकत का नाम है जिसके अन्दर
जितना अधिक बल वीर्य होगा उतना ही अधिक वह जवान होगा। अब आप यह सोचेंगे कि इसका प्रमाण क्या है कि वीर्य को शरीर में बने रहने से ही ताकत रहती है तो इसके बारे में हम आपको विस्तार से समझाते है। आयुर्वेद शास्त्रोंनुसार हम जो खाते है उसका
रस बनता है। रस से रक्त, रक्त से मांस, मांस से वसा, वसा से अस्थि, अस्थि से मज्जा और अन्त में वीर्य तैयार होता है। जब भी इनमें से शरीर की कोई धातु अपने संतुलन में कम पड़ जाती है तो शरीर में कई तरह की व्याधियां व शिकायते उत्पन्न होने
लगती है। इसी तरह से जब वीर्य की फिजूल खर्ची होने लगती है तो प्रकृति के नियमानुसार रस, रक्त, मांस, वसा, अस्थि, मज्जा जैसी अन्य धातुएं भी क्षीण होनी शुरू हो जाती है जिससे व्यक्ति दिन प्रतिदिन दुर्बल होने लगता है उसकी बुद्धि और स्मरण
शक्ति मन्द हो जाती है, पाचन क्रिया कमजोर पड़ जाती है, धात गिरना, स्वप्नदोष होना, स्त्राी मिलन में शीघ्रपतन होना, कमर व सिर दर्द होना, सांस फूलना तथा कई तरह के मूत्रा रोग बन जाना आदि शिकायतें उत्पन्न हो जाती है जिससे व्यक्ति चिड़चिड़े
स्वभाव का हो जाता है। थोड़ी सी मेहनत का कार्य करने पर या बोझ उठाने पर थकावट महसूस होने लगती है। दिल की धड़कन बढ़ जाती है। अनिद्रा, बेचैनी, सिर चकराने की शिकायत रहने लगती है। उसकी सोच एवं विचारों में ठहराव नहीं होता। सुबह कुछ सोचता
है, दोपहर को कुछ और सोचने लगता है तथा इसी से ग्रस्त होकर व्यक्ति युवावस्था की जवान उम्र में ही बूढ़ा व शक्तिहीन बन जाता है इसलिए वीर्य की रक्षा बहुत जरूरी है।
बचपन में अच्छी सेहत व तन्दरूस्ती की परवरिश के लिए पूरी जिम्मेदारी
माता-पिता की होती है और बुढ़ापे में अच्छी सेहत-तन्दरूस्ती संतान की सेवा पर निर्भर होती है लेकिन जवानी व युवावस्था की उम्र ऐसी है जिसमें अपनी सेहत तन्दरूस्ती की रक्षा स्वयं को ही करनी पड़ती है। लेकिन आज के युवक इतने लापरवाह है कि
जितने भी सेहत को नाश करने वाले शौक या दोष है वह सब उनको लग जाते है। खान-पान में बद परहेजी, भोग विलास की अधिकता, अश्लील साहित्य पढ़ना, ब्लू फिल्में देखना, रात को देर तक जागना, हस्तमैथुन व गुदा मैथुन करना, सिगरेट, शराब, पान, तम्बाकू
व जर्दे वाले गुटकों का सेवन करना आदि सब कुछ आज के युवकों का शौक बन चुका है जिससे वे उम्र से पहले ही कमजोर व बूढ़े हो जाते हैं। हमारे प्राचीन शास्त्रोें में कहा गया है कि ‘‘मल के आश्रय बल है और वीर्य के आश्रय जीवन है।’’ यदि किसी
को दिन में 5-7 बार शौच जाना पडे़ तो वह इतना निर्बल हो जाता है कि उसमें उठने तक की शक्ति नहीं रहती। इसी तरह वीर्य नष्ट होने से शरीर कमजोर होता है तथा उम्र घटती है। इसलिए हमारी सलाह है कि आप वीर्य की रक्षा करो वीर्य आपकी तन्दरूस्ती
की रक्षा करेगा।
आहारचारचेष्टाभियादृशीभिः समन्वितौ।
स्त्राीपुंसौ समुपेयातां तयो: पुत्रोऽपि तादृशः।।
अर्थात् सहवास के समय स्त्राी और पुरूष की चेष्टायें, आहार और आचार जैसे होते हैं, इनकी संतान में भी वैसा ही आहार-आचार एवं चेष्टा रहती है।
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